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श्री॒णामु॑दा॒रो ध॒रुणो॑ रयी॒णां म॑नी॒षाणां॒ प्रार्प॑णः॒ सोम॑गोपाः। वसुः॑ सू॒नुः सह॑सोऽअ॒प्सु राजा॒ विभा॒त्यग्र॑ऽउ॒षसा॑मिधा॒नः ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श्री॒णाम्। उ॒दा॒र इत्यु॑त्ऽआ॒रः। ध॒रुणः॑। र॒यी॒णाम्। म॒नी॒षाणा॑म्। प्रार्प॑ण॒ इति॑ प्र॒ऽअर्प॑णः। सोम॑गोपा॒ इति॒ सोम॑ऽगोपाः। वसुः॑। सु॒नुः। सह॑सः। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। राजा॑। वि। भा॒ति॒। अग्रे॑। उ॒षसा॑म्। इ॒धा॒नः ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

इन राजकार्यों में कैसे पुरुष को राजा बनावें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोगों को चाहिये कि जो पुरुष (उषसाम्) प्रभात समय के (अग्रे) आरम्भ में (इधानः) प्रदीप्यमान सूर्य के समान (श्रीणाम्) सब उत्तम लक्ष्मियों के मध्य (उदारः) परीक्षित पदार्थों का देने (रयीणाम्) धनों का (धरुणः) धारण करने (मनीषाणाम्) बुद्धियों का (प्रार्पणः) प्राप्त कराने और (सोमगोपाः) ओषधियों वा ऐश्वर्यों की रक्षा करने (सहसः) ब्रह्मचर्य किये जितेन्द्रिय बलवान् पिता का (सूनुः) पुत्र (वसुः) ब्रह्मचर्याश्रम करता हुआ, (अप्सु) प्राणों में (राजा) प्रकाशयुक्त होकर (विभाति) शुभ गुणों का प्रकाश करता हो, उसको सब का अध्यक्ष करो ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्यों को उचित है कि जो सुपात्रों को दान देने, धन का व्यर्थ खर्च न करने, सब को विद्या-बुद्धि देने, जिसने ब्रह्मचर्याश्रम सेवन किया हो, अपने इन्द्रिय जिसके वश में हों, उसका पुत्र योग के यम आदि आठ अङ्गों के सेवन से प्रकाशमान, सूर्य के समान अच्छे गुण-कर्म्म और स्वभावों से सुशोभित, और पिता के समान अच्छे प्रकार प्रजाओं का पालन करनेहारा पुरुष हो, उसको राज्य करने के लिये स्थापित करें ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अत्र राजकर्मणि कीदृग्जनोऽभिषेचनीय इत्याह ॥

अन्वय:

(श्रीणाम्) लक्ष्मीणां मध्ये (उदारः) य उत्कृष्टं परीक्ष्य ऋच्छति ददाति (धरुणः) धर्त्ताऽऽधारभूतः (रयीणाम्) धनानाम् (मनीषाणाम्) प्रज्ञानाम्। याभिर्मन्यते जानन्ति ता मनीषाः प्रज्ञास्तासाम् (प्रार्पणः) प्रापकः (सोमगोपाः) सोमानामोषधीनामैश्वर्य्याणां वा रक्षकः (वसुः) कृतब्रह्मचर्य्यः (सूनुः) सुतः (सहसः) बलवतः पितुः (अप्सु) प्राणेषु (राजा) प्रकाशमानः (वि) (भाति) प्रदीप्यते (अग्रे) सम्मुखे (उषसाम्) प्रभातानाम् (इधानः) प्रदीप्यमानः ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं यो जन उषसामग्र इधानः सूर्य इव श्रीणामुदारो रयीणां धरुणो मनीषाणां प्रार्पणः सोमगोपाः सहसः सूनुर्वसुः सन्नप्सु राजा विभाति, तं सर्वाध्यक्षं कुरुत ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यः सुपात्रेभ्यो दाता धनस्य व्यर्थव्ययस्याकर्त्ता, सर्वेषां विद्याबुद्धिप्रदः, कृतब्रह्मचर्यस्य जितेन्द्रियस्य तनयो योगाङ्गानुष्ठानेन प्रकाशमानः, सूर्यवत् शुभगुणकर्मस्वभावानां मध्ये देदीप्यमानो, पितृवत् प्रजापालको जनोऽस्ति, स राज्यकरणायाभिषेचनीयः ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी सुपात्रांना दान देणारा,धनाचा अपव्यय न करणारा, विद्या प्राप्त करणारा, ब्रह्मचर्याचे पालन करणारा, इंद्रियांना ताब्यात ठेवणारा, योगाच्या यम इत्यादी आठ अंगांचे पालन करणारा, सूर्याप्रमाणे तेजस्वी, चांगले गुण, कर्म, स्वभाव यांनी सुशोभित होणारा व पित्याप्रमाणे प्रजेचे पालन करणारा असेल तर अशा पुरुषास राजा निवडावे.